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जानें, कौन था पहला कांवड़िया और क्या हैं कावड़ यात्रा के नियम

सावन का पवित्र मास आज से शुरू हो गया है। कांवड़ लेकर श्रद्धालु घर से निकल पड़े हैं। सोमवार से कांवड़ यात्रियों की संख्या बढ़ेगी और शिव के जयकारों से गली-मुहल्ले गूंजने लगेंगे। ऐसे में अगर आप भी कांवड़ यात्रा की योजना बना रहे हैं या भविष्य में बमभोले को कांवड़ चढ़ाने पर विचार कर रहे हैं तो कांवड़ यात्रा के बारे में ये बातें आपको जरूर जाननी चाहिए…

1/5कांवड़ यात्रा कैसे शुरू हुई

बताया जाता है, पहला कांवड़िया रावण था। वहीं, मान्यता है कि भगवान राम ने भी भगवान शिव को कांवड़ चढ़ाई थी। आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम ने कांवड़िया बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था।

2/5क्या है कांवड़ यात्रा?

किसी पावन तीर्थ जैसे हरिद्वार से कंधे पर गंगाजल लेकर आने और अपने घर के नजदीक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ाने की परंपरा ‘कांवड़ यात्रा’ कहलाती है। सावन में भगवान महादेव की और भक्तों के बीच की दूरी कम हो जाती है। इसलिए भगवान को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने के लिए कई उपायों में एक उपाय कांवड़ यात्रा भी है, इसे शिव को प्रसन्न करने का सहज मार्ग माना गया है।

3/5कांवड़ के नियम

कावड़ यात्रा के कई नियम भी हैं, जिन्हें पूरा करने का हर कांवड़िया संकल्प करता है। यात्रा में नशा, मांस, मदिरा और तामसिक भोजन वर्जित है। बिना स्नान किए कावड़ को हाथ नहीं लगा सकते, चमड़े की वस्तु का स्पर्श नहीं करते, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, वृक्ष के नीचे भी कावड़ नहीं रखना, कावड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है।

4/5अश्वमेघ यज्ञ करने जितना मिलता है फल

कहा जाता है कि जो भी शिवभक्त सच्चे मन से सावन में कांधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए पैदल यात्रा करता है, उसे हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। उसके सभी पापों का अंत हो जाता है। उसको जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। मृत्यु के बाद उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।

5/5अलग-अलग तरह की कांवड़

1. सामान्य कांवड़: जिसमें कांवड़िए स्टैंड पर कांवड़ रखकर आराम से जाते हैं। 2. डाक कांवड़: इसमें शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहना होता है। 3. खड़ी कांवड़: कुछ भक्तों के साथ सहयोगी भी चलते हैं, जब वे आराम करते हैं दूसरे कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं। 4. दांडी कांवड़: ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता है।

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